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भारतीय मूल के अमेरिकी प्रोफेसर

भारतीय मूल के अमेरिकी प्रोफेसर "सुकन्या चक्रवर्ती" ने डार्क मैटर की पहचान के लिए ग्लैक्टो– सेसिमिक विधि विकसित की|


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2016-01-15 : भारतीय मूल की अमेरिकी वैज्ञानिक सुकन्या चक्रवर्ती के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने डार्क मैटर की प्रधानता वाली छोटी आकाशगंगाओं का पता लगाने के लिए एक नई विधि– ग्लैक्टोसेसिमोलॉजी विकसित की है। रोचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, न्यूयॉर्क की असिस्टेंट प्रोफेसर सुकन्या चक्रवर्ती ने 7 जनवरी 2016 को किस्सिम्मी में अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसके बारे में जानकारी दी। इसे द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स को दे दिया गया है।

इस खोजी गई विधि में आकाशगंगाओं की आंतरिक संरचनाओं और द्रव्यमान का मानचित्र बनाने के लिए ग्लैक्टिक डिस्क पर तरंगों का उपयोग करती है। यह बहुत कुछ भूकंपविज्ञान की तरह ही होता है जो भूकंपीय तरंगों का उपयोग पृथ्वी की आंतरिक संरचना के बारे में जानने के लिए करता है। यह विधि अंतरिक्ष के रहस्यमयी घटनाओं को समझने में मदद करेगी। प्रक्रिया में टीम ने स्पेक्ट्रोस्कोपिक ऑब्जर्वेशन का उपयोग नोर्मा नक्षत्र में तीन सेफिड वैरिएबल्स की गति की गणना में की। सेफिड वैरिएबल्स एक प्रकार के तारे होते हैं जिन्हें आकाशगंगाओं की दूरी की गणना में पैमाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

डार्क मैटर के बारे में :-

# डार्क मैटर काल्पनिक पदार्थ है जिसे टेलिस्कोप के जरिए नहीं देखा जा सकता लेकिन ब्रह्मांड का 85 फीसदी हिस्सा इसी से बना है। यह आज के भौतिक शास्त्र की सबसे बड़ी विचित्रता है और अभी तक इसे पूरी तकह से समझा नहीं जा सका है।

# डार्क मैटर की मौजूदगी और गुण का अनुमान दृश्य पदार्थ, विकिरण और ब्रह्माण्ड की बड़ी संरचनाओं पर अपने गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से लगाया जाता है।

# डार्क मैटर को प्रत्यक्ष रूप से नहीं पहचाना जा सकता, जिसकी वजह से यह आधुनिक खगोल भौतिकी में सबसे बड़े रहस्यों में से एक बना हुआ है।

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